भीतर एक उदासी बनी रहती है || आचार्य प्रशांत, अवधूत गीता पर (2020)

2024-08-01 3


1,702 views Premiered 8 hours ago
‍♂️ आचार्य प्रशांत से मिलना चाहते हैं?
लाइव सत्रों का हिस्सा बनें: https://acharyaprashant.org/hi/enquir...

आचार्य प्रशांत की पुस्तकें पढ़ना चाहते हैं?
फ्री डिलीवरी पाएँ: https://acharyaprashant.org/hi/books?...

~~~~~~~~~~~~~

वीडियो जानकारी:
हार्दिक उल्लास शिविर, 22.02.20, ऋषिकेश, उत्तराखंड, भारत

प्रसंग:
मुनिः प्रसन्नगम्भीरो दुर्विगाह्यो दुरत्ययः।
अनन्तपारो ह्यक्षोभ्यः स्तिमितोद इवार्णवः॥

भावार्थ: समुद्र से मैंने सीखा है कि साधक को सर्वथा प्रसन्न और गंभीर रहना चाहिए । उसका भाव अथाह, अपार और असीम होना चाहिए और किसी भी निमित्त से उसे क्षोभ नहीं करना चाहिए। उसे ठीक वैसे ही रहना चाहिए जैसे ज्वारभाटे और तरंगों से रहित शांत समुद्र।
~उद्धव गीता (अध्याय २, श्लोक ५)

~ साधक सर्वथा प्रसन्न और गंभीर कैसे रहे?
~ तरंगरहित शांत समुद्र की तरह कैसे रहें?
~ जीवन में प्रसन्नता और शांति कैसे आये?
~ समुद्र की तरह असीम कैसे रहें?
~भीतर एक उदासी बनी रहती है, उसको कैसे दूर करें?

संगीत: मिलिंद दाते
~~~~~~~~~~~~~

Free Traffic Exchange

Videos similaires